श्री अवध और ब्रज मे सिद्ध महात्मा वृक्ष आदि के रूप मे आज भी भजन करते रहते है ।

१. अयोध्या मे एक कीर्तनिया बाबा थे सियाराम बाबा । मानव निर्मित छाया मे नही जाते थे, एक आम के वृक्ष के नीचे रहकर भजन करते है । लगभग ३ घंटा विश्राम करते थे और बाकी समय श्री सीताराम नाम का जाप व कीर्तन करते । उनको नींद मे खर्राटे लेने की आदत थी, धीरे धीरे वह खर्राटे बड़े जोर के होने लगे । एक दिन पेड़ को टिक कर विश्राम कर रहे थे, की अचानक पीछे धड़ाम से गिरे । उठकर देखा तो वृक्ष था ही नही । बाबाजी सोचने लगे इतना विशाल वृक्ष गया कहां ? उसी समय सामने एक तेजस्वी महात्मा प्रकट हुए । बाबा ने प्रणाम करके पूछा की आप कौन है ? उन महात्मा ने कहा की हम हजारो साल से धाम मे इस वृक्ष के स्वरूप से रहकर भजन करते है ।

बाबा ने पूछा – मानव शरीर धारण करने का सामर्थ्य होनेपर भी वृक्ष के रूप में भजन किस कारण से ? सिद्ध महात्मा बोले – मानव शरीर मे शरीर, संसार का धर्म, कभी किसी से चर्चा, बातचीत में बहुत समय व्यय हो जाता है । बाबा ने कहा – हम आपकी क्या सेवा कर सकते है ? सिद्ध महात्मा बोले की तुम हमे नाम श्रवण कराते हो इससे हम तुमपर प्रसन्न है परंतु इन दिनों खर्राटे बडी जोर के लगाते हो, हमको भजन मे बाधा होती है । बाबा बोले – नींद मे शरीर क्या करता है इसपर हमारा कोई जोर नही चलता है । आप ही अपनी ओर से कृपा करके इन खर्राटों से मुक्ति दिलाए । सिध्द महात्मा बोले – अब तुम चिंता नही करना, निद्रा देवी तुम्हारे पास आएगी ही नही । अब हर समय भजन करते रहना । ऐसा कहकर बाबा पुनः अपने वृक्ष स्वरूप मे आ गए । सियाराम बाबा को उस दिन के बाद कभी नींद आयी ही नही ।

२. ब्रज क्षेत्र – पूछरी मे श्री गौर गोविंददास बाबाजी एक कुटी बना कर भजन करते थे। उनके साथ उनके एक सेवक लाडलीदास बाबा और कुटी के बाहर बेल के वृक्ष के रूप मे एक महात्मा निवास करते थे । वृक्ष छोटा और रूखा सूखा था । बाबा नित्य प्रति उस वृक्ष को जल देते और प्रणाम करते । दोनो मे कई बार सत्संग भी होता था । प्रथम बार जब उस वृक्ष को फल आये, तो उन महात्मा ने अपने स्वरूप मे प्रकट होकर कहा – तुमने मुझे सींचकर बड़ा किया है और फलदार बनाया है तो मेरी एक विनती है की इन फलों को ब्रज के संतो के पास पहुंचा देना । वे इन फलों को ठाकुर सेवा मे लगाएंगे । श्री गौर गोविंददास बाबा ने ऐसा ही किया ।

एक बार कीसी ने उस वृक्ष पर धोती सुखाने के लिए डाल दी । महात्मा ने गौर गोविंद दास को स्वप्न मे कहा – मेरे ऊपर किसी को कपड़े सुखाने मत दिया करो, भजन मे विघ्न पड़ता है ।

३. जब मलूकपीठ मे एक ओर फाटक बनाने की बात चली तो बीच मे एक विशाल नीम का पेड़ था । लोगो ने वर्तमान पीठाधीश्वर से कहा की इस वृक्ष को हटाना पड़ेगा । या तो इस वृक्ष को काट दिया जाए या दवाई डालकर सूखा दिया जाए । वर्तमान पीठाधीश्वर के मन मे वृंदावन के सभी जीवों के प्रति पूज्य भाव है, उनके मन को यह बात पीड़ा पहुँचाने लगी । उन्होंने सबको घर भेजते हुए कहा की कल विचार करेंगे । उन्होंने उस वृक्ष को प्रणाम करके कहां की आप जो भी महात्मा या सखी सहचरी है, आपको पीड़ा होने से अपराध बनेगा । आपसे विनती है की आप स्वतः ही किसी अन्य स्थान पर भजन करें । अगली सुबह ही वह हराभरा पेड़, पूरा सुख चुका था । उसके पत्ते झड़ गए थे और उसकी मोटी सी टहनी बहुत ही पतली हो चुकी थी ।

अवध के महात्मा श्री रामचन्द्र दास द्वारा सुना हुआ, दूसरी कथा ब्रज के भक्त पुस्तक मे हमने पढ़ी थी, तीसरा अनुभव खुद श्री राजेंद्रदास बाबाजी ने बताया था ।

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